Class 10 Hindi A Unseen Passages अपठित काव्यांश
अपठित काव्यांश
अपठित काव्यांश अपठित काव्यांश किसी कविता का वह अंश होता है जो पाठ्यक्रम में शामिल पुस्तकों से नहीं लिया जाता है। इस अंश को छात्रों द्वारा पहले नहीं पढ़ा गया होता है।
अपठित काव्यांश का उद्देश्य काव्य पंक्तियों का भाव और अर्थ समझना, कठिन शब्दों के अर्थ समझना, प्रतीकार्थ समझना, काव्य सौंदर्य समझना, भाषा-शैली समझना तथा काव्यांश में निहित संदेश। शिक्षा की समझ आदि से संबंधित विद्यार्थियों की योग्यता की जाँच-परख करना है।
अपठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों को हल करने से पहले काव्यांश को दो-तीन बार पढ़ना चाहिए तथा उसका भावार्थ और मूलभाव समझ में आ जाए। इसके लिए काव्यांश के शब्दार्थ एवं भावार्थ पर चिंतन-मनन करना चाहिए। छात्रों को व्याकरण एवं भाषा पर अच्छी पकड़ होने से यह काम आसान हो जाता है। यद्यपि गद्यांश की तुलना में काव्यांश की भाषा छात्रों को कठिन लगती है। इसमें प्रतीकों का प्रयोग इसका अर्थ कठिन बना देता है, फिर भी निरंतर अभ्यास से इन कठिनाइयों पर विजय पाई जा सकती है।
अपठित काव्यांश संबंधी प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित प्रमुख बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए –
- काव्यांश को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ना और उसके अर्थ एवं मूलभाव को समझना।
- कठिन शब्दों या अंशों को रेखांकित करना।
- प्रश्न पढ़ना और संभावित उत्तर पर चिह्नित करना।
- प्रश्नों के उत्तर देते समय प्रतीकार्थों पर विशेष ध्यान देना।
- प्रश्नों के उत्तर काव्यांश से ही देना; काव्यांश से बाहर जाकर उत्तर देने का प्रयास न करना।
- उत्तर अपनी भाषा में लिखना, काव्यांश की पंक्तियों को उत्तर के रूप में न उतारना।
- यदि प्रश्न में किसी भाव विशेष का उल्लेख करने वाली पंक्तियाँ पूछी गई हैं तो इसका उत्तर काव्यांश से समुचित भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ही लिखना चाहिए।
- शीर्षक काव्यांश की किसी पंक्ति विशेष पर आधारित न होकर पूरे काव्यांश के भाव पर आधारित होना चाहिए।
- शीर्षक संक्षिप्त आकर्षक एवं अर्थवान होना चाहिए।
- अति लघुत्तरीय और लघुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर में शब्द सीमा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
- प्रश्नों का उत्तर लिखने के बाद एक बार दोहरा लेना चाहिए ताकि असावधानी से हुई गलतियों को सुधारा जा सके।
काव्यांश को हल करने में आनेवाली कठिनाई से बचने के लिए छात्र यह उदाहरण देखें और समझें –
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्नः 1.
कवि देशवासियों से क्या आह्वान कर रहा है?
उत्तर:
कवि देशवासियों से यह आह्वान कर रहा है कि वे भारत में एकता स्थापित करके सुख-शांति से जीवन बिताएँ।
प्रश्नः 2.
आपस में एकता बनाए रखने के लिए किसका उदाहरण दिया गया है?
उत्तर:
आपस में एकता बनाए रखने के लिए कवि तरह-तरह के फूलों से बनी सुंदर माला का उदाहरण दे रहा है।
प्रश्नः 3.
देश में एकता की भावना कब मज़बूत हो सकती है?
उत्तर:
देश में एकता की सच्ची भावना तब मज़बूत हो सकती है जब हर देशवासी जाति-धर्म, भाषा प्रांत आदि के बारे में अविवेक से सोचना बंद करे और सच्चे मन से दूसरों से मेल करे।
प्रश्नः 4.
‘भिन्नता में खिन्नता’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
भिन्नता के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि अलग-अलग रहने का परिणाम दुख एवं अशांति ही होता है। अतः हमें मेल जोल और ऐक्यभाव से रहना चाहिए क्योंकि एकता के अभाव में देश कमज़ोर हो जाएगा जिसका परिणाम दुखद ही होगा।
प्रश्नः 5.
काव्यांश में सच्ची एकता किसे कहा गया है? इसे बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सच्चे मन से ही एक-दूसरे से मिलने को सच्ची एकता कहा है। इसके लिए भारतीयों को आपसी बैर और विरोध को सप्रयास बलपूर्वक दबा देना चाहिए और एकता मज़बूत करनी चाहिए।
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
1. कोलाहल हो,
या सन्नाटा, कविता सदा सृजन करती है,
जब भी आँसू
कविता सदा जंग लड़ती है।
यात्राएँ जब मौन हो गईं
कविता ने जीना सिखलाया
जब भी तम का
जुल्म चढ़ा है, कविता नया सूर्य गढ़ती है,
जब गीतों की फ़सलें लुटती
शीलहरण होता कलियों का,
शब्दहीन जब हुई चेतना हुआ पराजित,
तब-तब चैन लुटा गलियों का जब भी कर्ता हुआ अकर्ता,
जब कुरसी का
कंस गरजता, कविता स्वयं कृष्ण बनती है।
अपने भी हो गए पराए कविता ने चलना सिखलाया।
यूँ झूठे अनुबंध हो गए
घर में ही वनवास हो रहा
यूँ गूंगे संबंध हो गए। (Delhi 2015)
प्रश्नः 1.
कविता की प्रवृत्ति किस तरह की बताई गई है?
उत्तर:
कविता की प्रवृत्ति हर काल में नव सृजन करने वाली बताई गई है।
प्रश्नः 2.
कविता मनुष्य को कब जीना सिखाती है?
उत्तर:
जब परिश्रमी कर्मठ और श्रम करने वाले लोग अकर्मण्यता का शिकार हो जाते हैं तब कविता कर्म की राह दिखाकर उन्हें जीना सिखाती है।
प्रश्नः 3.
कविता लगातार संघर्ष करने की प्रेरणा देती है-ऐसा किस पंक्ति में कहा गया है?
उत्तर:
उक्त भाव व्यक्त करने वाली पंक्ति है… जब भी आँसू हुआ पराजित, कविता सदा जंग लड़ती है।
प्रश्नः 4.
कविता ने लोगों को कब प्रेरित किया और कैसे?
उत्तर:
जब जब लोगों में निराशा और अंधकार के कारण हताशा की स्थिति आई, तब-तब कविता ने लोगों को प्रेरित किया। निराशा की इस बेला में कविता नया सूर्य बनकर अंधेरे में रास्ता दिखाती है।
प्रश्नः 5.
संबंधों में दूरियाँ आ जाने का परिणाम आज किस रूप में भुगतना पड़ रहा है?
उत्तर:
संबंधों में दूरियाँ बढ़ जाने के कारण अपने लोग भी दूसरों जैसा ही व्यवहार करने लगे। जो संबंध अत्यंत घनिष्ठ थे वे समझौता बनकर रह गए। लोग एक घर में रहते हुए भी दूरी बनाकर रहने लगे हैं।
2. जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हों चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहनेवाली।
मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दुधमुँही जिसे बहलाने के
जंतर-मंतर सीमित हों चार खिलौनों में।
लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है;
जनता की रोके राह, समय में ताब कहाँ ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुँचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो;
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तू किसे ढूँढ़ता है मूरख,
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में। (Delhi 2015)
प्रश्नः 1.
एहसासहीन जनता की तुलना किससे की गई है?
उत्तर:
एहसासहीन जनता की तुलना उस फूल से की गई है जिसे जब चाहें, तोड़कर दूसरे के सामने प्रस्तुत कर दिया जाता है।
प्रश्नः 2.
कवि किसके सिर पर मुकुट रखने के लिए कह रहा है?
उत्तर:
कवि तैंतीस करोड़ भारतीय जनता के सिर पर मुकुट रखने के लिए कह रहा है।
प्रश्नः 3.
‘जंतर-मंतर सीमित हों चार खिलौनों में’ का भाव क्या है?
उत्तर:
भाव यह है कि अपनी माँगों के लिए आवाज़ उठाती जनता को बातों का खिलौना देकर बहला दिया जाता है।
प्रश्नः 4.
क्रोधित जनता में क्रांति भड़कने का क्या परिणाम होता है ?
उत्तर:
क्रोधित जनता में क्रांति भड़कने पर व्यवस्था में भूकंप आ जाता है, तूफ़ान आ जाता है। उसकी हुंकार से शासन की नींव हिल जाती है। उसकी शक्ति से सत्ता नष्ट हो जाती है। तब समय में भी इतनी ताकत नहीं रहती कि उसे रोका जा सके।
प्रश्नः 5.
कवि ने देवता किसे कहा है ? वह कहाँ रहता है?
उत्तर:
कवि ने हमारे देश के साधारण लोगों, मज़दूरों, किसानों आदि को देवता कहा है। ऐसे देवता देवालयों और राजप्रासादों में न रहकर सड़कों के किनारे मिट्टी खोदते और खेतों-खलिहानों में काम करते हुए मिल जाते हैं।
3. सबको स्वतंत्र कर दे यह संगठन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥
जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में।
हो रक्त बूंद भर भी जब तक हमारे तन में।
छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥
कोई दलित न जग में हमको पड़े दिखाई।
स्वाधीन हों सुखी हों सारे अछूत भाई ॥
सबको गले लगा ले यह शुद्ध मन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा ।।
धुन एक ध्यान में है, विश्वास है विजय में।
हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में प्रलय में॥
कैसे उजाड़ देगा कोई चमन हमारा?
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥
हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे।
हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे॥
जब तक पहुँच न लेंगे तब तक न साँस लेंगे।
वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे।
गायें सुयश खुशी से जग में सुजन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥ (Foreign 2015)
प्रश्नः 1.
कवि की हार्दिक इच्छा क्या है?
उत्तर:
कवि की हार्दिक इच्छा यह है कि वह मरते समय तक देश की सेवा करता रहे।
प्रश्नः 2.
‘हम प्राण होम देंगे हँसते हुए जलेंगे’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
‘हम प्राण होम देंगे हँसते हुए जलेंगे’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3.
‘हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में प्रलय में’ यहाँ ‘तफ़ान’ और ‘प्रलय’ किसके प्रतीक हैं?
उत्तर:
‘हम तो अचल रहेंगे तूफान में प्रलय में’-यहाँ ‘तूफ़ान’ और ‘प्रलय’ राह की मुश्किलों के प्रतीक हैं।
प्रश्नः 4.
कवि जिस समाज की कल्पना करता है उसका स्वरूप कैसा होगा?
उत्तर:
कवि जिस समाज की कल्पना करता है उसमें कोई भी दीन-दुखी और दलित नहीं होगा। समाज के अछूत समझे जाने वाले दलित जन भी आपस में भाई-भाई होंगे और वे एक-दूसरे को प्रेम से गले लगाएँगे।
प्रश्नः 5.
कवि अपना लक्ष्य पाने के लिए क्या-क्या करना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
कवि अपना लक्ष्य पाने के लिए शरीर में एक भी साँस रहने तक आगे बढ़ना चाहता है। वह लक्ष्य तक पहुँचे बिना साँस तक नहीं लेना चाहता है। कवि उस लक्ष्य के सहारे चाहता है कि विश्व के लोग भारत का गुणगान करें।
4. तेरे-मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा ।।
बँटवारे ने भीतर-भीतर
ऐसी-ऐसी डाह जगाई।
जैसे सरसों के खेतों में
सत्यानाशी उग-उग आई॥
तेरे-मेरे बीच कहीं है टूटा-अनटूटा पतियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा॥
अपशब्दों की बंदनवारें
अपने घर हम कैसे जाएँ।
जैसे साँपों के जंगल में
पंछी कैसे नीड़ बनाएँ।।
तेरे-मेरे बीच कहीं है भूला-अनभूला गलियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा ।।
बचपन की स्नेहिल तसवीरें
देखें तो आँखें दुखती हैं।
जैसे अधमुरझी कोंपल से
ढलती रात ओस झरती है॥
तेरे-मेरे बीच कहीं है बूझा-अनबूझा उजियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा॥ (Foreign 2015)
प्रश्नः 1.
कविता में किस बँटवारे की बात कही गई है? उत्तर:
कविता में दो भाइयों के बीच हुए बँटवारे और उससे उत्पन्न स्थिति की बात कही गई है।
प्रश्नः 2.
‘तेरे-मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा’ का भाव क्या है?
उत्तर:
‘तेरे-मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा’ का भाव यह है कि संबंधों में इतनी घृणा हो गई है कि भाईचारा के लिए इसमें कोई जगह नहीं है।
प्रश्नः 3.
सरसों के खेत और सत्यानाशी किनके प्रतीक हैं?
उत्तर:
‘सरसों के खेत’ मिल जुलकर रहने वालों और ‘सत्यानाशी’ एकता देखकर ईर्ष्या से जल-भुन जाने वालों के प्रतीक हैं।
प्रश्नः 4.
अपशब्दों की बंदनवारें हमारे संबंध और रहन-सहन को किस तरह प्रभावित कर रही हैं ?
उत्तर:
अपशब्दों की बंदनवारों के कारण लोगों का आपस में मिलना-जुलना कम हो गया है। आज स्थिति यह है कि साँपों के जंगल में पक्षी कैसे अपना घर बना सकते हैं। अब तो लोग एक-दूसरे से मिलने में कतराने लगे हैं।
प्रश्नः 5.
बचपन की तस्वीरें देखकर कवि को कैसा लगता है ? ऐसे में कवि को किस बात की आशा जग रही है?
उत्तर:
बचपन की तसवीरें देखकर लगता है कि पहले लोगों में बहत भाईचारा था। वे मिल-जुलकर रहते थे। वैसी स्थिति अब स्वप्न बन गई है। ऐसे में कवि को आशा है कि दिलों में आई ये दूरियों की मलिनता समाप्त हो जाएगी और नए संबंधों की शुरुआत होगी।
5. ओ महमूदा मेरी दिल जिगरी
तेरे साथ मैं भी छत पर खड़ी हूँ
तुम्हारी रसोई तुम्हारी बैठक और गाय-घर में
पानी घुस आया
उसमें तैर रहा है घर का सामान
तेरे बाहर के बाग का सेब का दरख्त
टूट कर पानी के साथ बह रहा है
अगले साल इसमें पहली बार सेब लगने थे
तेरी बल खाकर जाती कश्मीरी कढ़ाई वाली चप्पल
हुसैन की पेशावरी जूती
बह रहे हैं गंदले पानी के साथ
तेरी ढलवाँ छत पर बैठा है
घर के पिंजरे का तोता
वह फिर पिंजरे में आना चाहता है
महमूदा मेरी बहन
इसी पानी में बह रही है तेरी लाडली गऊ
इसका बछड़ा पता नहीं कहाँ है
तेरी गऊ के दूध भरे थन
अकड़ कर लोहा हो गए हैं
जम गया है दूध
सब तरफ पानी ही पानी
पूरा शहर डल झील हो गया है
महमूदा, मेरी महमूदा
मैं तेरे साथ खड़ी हूँ
मुझे यकीन है छत पर ज़रूर
कोई पानी की बोतल गिरेगी
कोई खाने का सामान या दूध की थैली
मैं कुरबान उन बच्चों की माँओं पर
जो बाढ़ में से निकलकर
बच्चों की तरह पीड़ितों को
सुरक्षित स्थान पर पहुँचा रही हैं
महमूदा हम दोनों फिर खड़े होंगे
मैं तुम्हारी कमलिनी अपनी धरती पर…
उसे चूम लेंगे अपने सूखे होठों से
पानी की इस तबाही से फिर निकल आएगा।
मेरा चाँद जैसा जम्मू
मेरा फूल जैसा कश्मीर। (All India 2015)
प्रश्नः 1.
रसोई, बैठक और गाय घर में पानी घुस आने का क्या कारण है ?
उत्तर:
रसोई, बैठक और गाय-घर में पानी घुस आने का कारण भीषण बाढ़ है।
प्रश्नः 2.
‘पूरा शहर डल-झील हो गया है’ का आशय क्या है ?
उत्तर:
आशय यह है कि बाढ़ का पानी चारों ओर ऐसा भर गया है जैसे सारा शहर डलझील बन गया है।
प्रश्नः 3.
कवयित्री को किस बात का विश्वास है?
उत्तर:
कवयित्री को विश्वास है कि उसकी छत पर पानी की बोतल, खाने का सामान या दूध की थैली अवश्य गिरेगी।
प्रश्नः 4.
जलमग्न हुए स्थान पर तोते और गाय-बछड़े की मार्मिक दशा कैसी हो गई है?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर में बाढ़ आ जाने से पेड़ धराशायी हो गए हैं। बाहर सब जलमग्न हो गया है। इस स्थिति में तोता घर की छत पर बैठा है। इसी पानी में महमूदा की गाय बह रही है, बछड़े का पता नहीं है। बछड़े से न मिल पाने के कारण गाय के दूध भरे थन अकड़ गए हैं।
प्रश्नः 5.
कवयित्री की आशावादिता किस प्रकार प्रकट हुई है? काव्यांश के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
कवयित्री को आशा है कि पानी जल्द ही उतर जाएगा, धरती की रौनक-लौट आएगी और ज मू-कश्मीर का स्वर्ग जैसा सौंदर्य पुनः जल्दी वापस आ जाएगा।
6. हम जंग न होने देंगे!
विश्व शांति के हम साधक हैं,
जंग न होने देंगे!
कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फलेगी,
खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी,
आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा,
एटम से फिर नागासाकी नहीं जलेगी
युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे!
हथियारों के ढेरों पर जिनका है डेरा,
मुँह में शांति, बगल में बम, धोखे का फेरा,
कफ़न बेचने वालों से कह दो चिल्लाकर,
दुनिया जान गई है उनका असली चेहरा,
कामयाब हों उनकी चालें, ढंग न होने देंगे!
हमें चाहिए शांति, ज़िंदगी हमको प्यारी,
हमें चाहिए शांति, सृजन की है तैयारी,
हमने छेड़ी जंग भूख से, बीमारी से,
आगे आकर हाथ बटाए दुनिया सारी,
हरी-भरी धरती को खूनी रंग न लेने देंगे! (Delhi 2014)
प्रश्नः 1.
कवि किस तरह की दुनिया चाहता है ?
उत्तर:
कवि ऐसी दुनिया चाहता है, जहाँ युद्ध का नामोनिशान न हो और सर्वत्र शांति हो।
प्रश्नः 2.
‘खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी’ का आशय क्या है?
उत्तर:
‘खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी’ का आशय है कि युद्ध अब अपार जनसंहार का कारण नहीं बनेगा।
प्रश्नः 3.
‘कफ़न बेचने वाले’ कहकर कवि ने किनकी ओर संकेत किया है?
उत्तर:
कफ़न बेचने वालों कहकर कवि ने उन देशों की ओर संकेत किया है जो घातक अस्त्र-शस्त्र की खरीद-फरोख्त करते हैं।
प्रश्नः 4.
‘एटम’ के माध्यम से कवि ने क्या याद दिलाया है ? उसका सपना क्या है ?
उत्तर:
एटम के माध्यम से कवि ने अमेरिका द्वारा नागासाकी और हिरोशिमा पर गिराए गए बम की ओर संकेत किया है। उसका सपना यह है उसने युद्धरहित दुनिया का स्वप्न देखा है, वह किसी भी दशा में नहीं टूटना चाहिए।
प्रश्नः 5.
कवि ने किसके विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है? उसका यह कार्य कितना उचित है?
उत्तर:
कवि ने भूख और बीमारी से जंग छेड़ रखी है। इसका कारण यह है कि कवि को शांतिपूर्ण जीवन पसंद है। वह नवसृजन की तैयारी में व्यस्त है। इस जंग में वह विश्व को भागीदार बनाकर दुनिया में खुशहाली देखना चाहता है।
7. जिसके निमित्त तप-त्याग किए, हँसते-हँसते बलिदान दिए,
कारागारों में कष्ट सहे, दुर्दमन नीति ने देह दहे,
घर-बार और परिवार मिटे, नर-नारि पिटे, बाज़ार लुटे
आई, पाई वह ‘स्वतंत्रता’, पर सुख से नेह न नाता है –
क्या यही ‘स्वराज्य’ कहाता है।
सुख, सुविधा, समता पाएँगे, सब सत्य-स्नेह सरसाएँगे,
तब भ्रष्टाचार नहीं होगा, अनुचित व्यवहार नहीं होगा,
जन-नायक यही बताते थे, दे-दे दलील समझाते थे,
वे हुई व्यर्थ बीती बातें, जिनका अब पता न पाता है।
क्या यही ‘स्वराज्य’ कहाता है।
शुचि, स्नेह, अहिंसा, सत्य, कर्म, बतलाए ‘बापू’ ने सुधर्म,
जो बिना धर्म की राजनीति, उसको कहते थे वह अनीति,
अब गांधीवाद बिसार दिया, सद्भाव, त्याग, तप मार दिया,
व्यवसाय बन गया देश-प्रेम, खुल गया स्वार्थ का खाता है –
क्या यही ‘स्वराज्य’ कहाता है। (Delhi 2014)
प्रश्नः 1.
वीरों ने किसके लिए तप त्याग करते हुए अपना बलिदान दे दिया?
उत्तर:
वीरों ने देश को आज़ादी दिलाने के लिए तप-त्याग करते हुए अपना बलिदान दे दिया।
प्रश्नः 2.
‘सुख-सुविधा समता पाएँगे’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
‘सुख-सुविधा समता पाएँगे’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3.
‘क्या यही स्वराज्य कहाता है’ कहकर कवि ने व्यंग्य क्यों किया है ?
उत्तर:
‘क्या यही स्वराज्य कहाता है’ कहकर कवि ने इसलिए व्यंग्य किया है क्योंकि हमारे जननायकों ने ऐसी स्वतंत्रता का सपना नहीं देखा था।
प्रश्नः 4.
हमारे जननायकों ने किस तरह की स्वतंत्रता का स्वप्न देखा था? वह स्वप्न कहाँ तक पूरा हो सका।
उत्तर:
हमारे जननायकों द्वारा स्वतंत्रता का सपना देखा गया था उसमें सभी को सुख-सुविधा और समानता पाने तथा मिल-जलकर प्रेम से रहने, भ्रष्टाचार मुक्त भारत में सबके साथ एक समान व्यवहार करने के सुंदर दृश्य की कल्पना की गई थी।
प्रश्नः 5.
बापू अनीति किसे मानते थे? उनकी राजनीति की आज क्या स्थिति है?
उत्तर:
बापू उस राजनीति को अनीति कहते थे जिसमें पवित्रता, प्रेम, अहिंसा शांति जैसे सुधर्म का मेल न हो। उनकी राजनीति में अब गांधीवाद, सद्भाव, त्याग, तप आदि मर चुका है। देश-प्रेम के नाम पर व्यवसाय किया जा रहा है और सर्वत्र स्वार्थ का बोलबाला है।
8. जैसे धधके आग ग्रीष्म के लाल पलाशों के फूलों में,
वैसी आग जगाओ मन में, वैसी आग जगाओ रे।
जीवन की धरती तो रूखी मटमैली ही होती है,
तन-तरु-मूल सिंचाई, अतल की गहराई में होती है।
किंतु कोपलों जैसे ज्वाला में भी शीश उठाओ रे,
ऐसी आग जगाओ मन में, ऐसी आग जगाओ रे।
एक आग होती है मन को जो कि राह दिखलाती है,
सघन अँधेरे में मशाल बन दिशि का बोध कराती है,
किंतु द्वेष की चिनगारी से मत घर-द्वार जलाओ रे,
ऐसी आग जगाओ मन में, ऐसी आग जगाओ रे।
आज ग्रीष्म की ऊष्मा कल को रिमझिम राग सुनाएगी,
तापमयी दोपहरी, संध्या को बयार ले आएगी;
रसघन आँगन में हिलकोरे, ऐसा ताप रचाओ रे;
ऐसी आग जगाओ मन में, ऐसी आग जगाओ रे। (Foreign 2014)
प्रश्नः 1.
कवि किनसे कैसी ज्वाला जलाने के लिए कह रहा है?
उत्तर:
कवि देश के नवयुवकों से ग्रीष्म ऋतु में धधकते पलाश के लाल फूलों-सी क्रांति जगाने के लिए कह रहा है।
प्रश्नः 2.
वृक्षों की कोपलें हमें क्या प्रेरणा देती हैं?
उत्तर:
वृक्षों की कोपलें हमें ज्वालाओं में भी सिर ऊँचा उठाए रखने की प्रेरणा देती हैं।
प्रश्नः 3.
‘जीवन की धरती तो रूखी मटमैली’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
‘जीवन की धरती तो रूखी मटमैली’ में रूपक अलंकार है।
प्रश्नः 4.
कवि ने दो प्रकार की आग का उल्लेख किया है। कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
काव्यांश में कवि ने दो प्रकार की आग का उल्लेख किया है। पहली आग वह ज्ञान है जिससे मन को दिशा दिख जाती है और अँधेरे में मार्ग प्रकाशित होता है किंतु वह दूसरी आग अर्थात् द्वेष की ज्वाला से दूर रहना चाहता है ताकि इससे किसी का घर न जले।
प्रश्नः 5.
आज जलाने से कवि को किस सुखद परिणाम की आशा है ? काव्यांश के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
आग जलाने से कवि जिस सुखद परिणाम की आशा करता है, वे हैं –
क. दुख सहने और संघर्ष करने से ही सुखद समय आएगा।
ख. जिस प्रकार गरम दोपहरी के बाद सुहानी शाम आती है उसी प्रकार क्रांति का परिणाम भी सुखद ही होगा।
ग. हर घर-आँगन में खुशी का वातावरण होगा।
9. कैसे बेमौके पर तुमने ये
मज़हब के शोले सुलगाए।
मानव-मंगल-अभियानों में
जब नया कल्प आरंभ हुआ
जब चंद्रलोक की यात्रा के
सपने सच होने को आए।
तुम राग अलापो मज़हब का
पैगंबर को बदनाम करो,
नापाक हरकतों में अपनी
रूहों को कत्लेआम करो!
हम प्रजातंत्र में मनुष्यता के
मंगल-कलश सँवार रहे
हर जाति-धर्म के लिए
खुला आकाश-प्रकाश पसार रहे।
उत्सर्ग हमारा आज
हिमालय की चोटी छू आया है।
सदियों की कालिख को
हमने बलिदानों से धोना है
मानवता की खुशहाली की
हरियाली फ़सलें बोना है।
बढ़-बढ़कर बातें करने की
बलिदानी रटते बान नहीं
इतना तो तुम भी समझ गए
यह कल का हिंदुस्तान नहीं। (Foreign 2014)
प्रश्नः 1.
कवि ने ‘मज़हब के शोले’ किन्हें कहा है ?
उत्तर:
कवि ने जाति-धर्म-संप्रदाय आदि पर आधारित नफ़रत फैलाने वाली बातों को ‘मज़हब के शोले’ कहा है।
प्रश्नः 2.
मज़हब के शोले सुलगाने का यह मौका क्यों नहीं है?
उत्तर:
मज़हब के शोले सुलगाने का यह वक्त इसलिए नहीं है क्योंकि इस समय मानव द्वारा मंगल पर यान भेजा जा रहा है जिससे चंद्रलोक की यात्रा की कल्पना को साकार रूप मिलेगा।
प्रश्नः 3.
‘बढ़-बढ़कर बातें करने की’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
‘बढ़-बढ़कर बातें करने की’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4.
मज़हब का राग अलापने वाले तथा अन्य लोगों में क्या अंतर है?
उत्तर:
मज़हब का राग अलापने वाले अपने स्वार्थपूर्ण कार्यों से पैगंबर को बदनाम करते हैं और निर्दोष लोगों का खून खराबा करते हैं जबकि अन्य लोग लोकतंत्र को मजबूत बनाते हुए हर जाति-धर्म के लोगों के लिए अवसरों की समानता उपलब्ध करा रहे हैं।
प्रश्नः 5.
कवि अपने देश के लिए क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
कवि अपने बलिदान से सदियों की कालिख को धो देना चाहता है तथा मानवता की भलाई एवं खुशहाली के लिए हरियाली की फ़सल बोकर देश को खुशहाल देखना चाहता है।
10. शीश पर मंगल-कलश रख
भूलकर जन के सभी दुख
चाहते हो तो मना लो जन्म-दिन भूखे वतन का।
जो उदासी है हृदय पर,
वह उभर आती समय पर,
पेट की रोटी जुड़ाओ,
रेशमी झंडा उड़ाओ,
ध्यान तो रक्खो मगर उस अधफटे नंगे बदन का।
तन कहीं पर, मन कहीं पर,
धन कहीं, निर्धन कहीं पर,
फूल की ऐसी विदाई,
शूल को आती रुलाई
आँधियों के साथ जैसे हो रहा सौदा चमन का।
आग ठंडी हो, गरम हो,
तोड़ देती है, मरम को,
क्रांति है आनी किसी दिन,
आदमी घड़ियाँ रहा गिन, राख कर देता सभी कुछ अधजला दीपक भवन का
जन्म-दिन भूखे वतन का। (All India 2014)
प्रश्नः 1.
देश की स्वतंत्रता का उत्सव मनाना कब अर्थहीन हो जाता है?
उत्तर:
देश की स्वतंत्रता का उत्सव मनाना तब अर्थहीन हो जाता है, जब देश की जनता भूखी और उदास हो।
प्रश्नः 2.
कवि किस उदासी की बात कर रहा है?
उत्तर:
कवि जनता की अभावग्रस्तता, मूलभूत सुविधाओं की कमी आदि से उत्पन्न उदासी की बात कर रहा है।
प्रश्नः 3.
‘अधजला दीपक भवन का’ किसका प्रतीक है?
उत्तर:
अधजला दीपक भवन का भूखे-प्यासे दुखी और अभावग्रस्त लोगों का प्रतीक है।
प्रश्नः 4.
कवि देश के शासकों से क्या कहना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
कवि देश के शासकों से यह कहना चाहते हैं कि वे आज़ादी का उत्सव मनाएँ, रेशमी झंडा लहराएँ पर उन गरीबों के लिए रोटी और अधनंगे बदन वालों के लिए वस्त्र का इंतज़ाम करें का भी ध्यान रखें। वह ऐसा इसलिए कह रहा है क्योंकि शासकों को संवेदनहीनता के कारण भूखी जनता का ध्यान नहीं रह गया है।
प्रश्नः 5.
कवि को ऐसा क्यों लगता है कि किसी दिन क्रांति होकर रहेगी? इसका क्या परिणाम होगा?
उत्तर:
देश की बदहाल स्थिति देखकर कवि को लगता है कि देश की जनता शोषण, अभावग्रस्तता, दुख और आपदाओं से जैसे समझौता कर रही है। जिस दिन उसका धैर्य जवाब देगा उसी दिन क्रांति हो जाएगी तब यह आक्रोशित जनता यह व्यवस्था नष्ट करके रख देगी।
11. बहती रहने दो मेरी धमनियों में
जन्मदात्री मिट्टी की गंध,
मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा,
सदा-सदा को वांछित रह सकने वाले
पसीने की खारी यमुना।
शपथ खाने दो मुझे
केवल उस मिट्टी की
जो मेरे प्राणों का आदि है,
मध्य है,
अंत है।
सिर झुकाओ मेरा
केवल उस स्वतंत्र वायु के सम्मुख
जो विश्व का गरल पीकर भी
बहता है
पवित्र करने को कण-कण।
क्योंकि
मैं जी सकता हूँ
केवल उस मिट्टी के लिए,
केवल इस वायु के लिए।
क्योंकि
मैं मात्र साँस लेती
खाल होना नहीं चाहता। (All India 2014)
प्रश्नः 1.
‘जन्मदात्री मिट्टी की गंध’ पंक्ति में कवि की इच्छा का स्वरूप क्या है?
उत्तर:
‘जन्मदात्री मिट्टी की गंध’ पंक्ति में कवि की इच्छा का स्वरूप मातृभूमि के प्रति गहन अनुराग की उत्कट भावना है।
प्रश्नः 2.
‘मात्र साँस लेती खाल’ का आशय क्या है?
उत्तर:
मात्र साँस लेती खाल का आशय है – अपने स्वार्थ में डूबकर निष्प्राणों जैसा जीवन बिताना।
प्रश्नः 3.
‘पवित्र करने को कण-कण’ में कौन-कौन सा अलंकार है?
उत्तर:
‘पवित्र करने को कण-कण में’ अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4.
मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? उसने मातृभूमि की मिट्टी से अपना लगाव कैसे प्रकट किया है?
उत्तर:
‘मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा’ के माध्यम से कवि पीड़ित मानवता के उद्धार की बात कहना चाहता है। उसने मिट्टी को अपने प्राणों का आदि मध्य और अंत बताकर अपना लगाव प्रकट किया है।
प्रश्नः 5.
कवि अपना सिर किसके सामने झुकाना चाहता है और किसके लिए जीना चाहता है?
उत्तर:
कवि अपना सिर उस वायु के सामने झुकाना चाहता है जो विश्व का जहर पीकर भी बहती रहती है। इसी वायु का सेवन करके वह इसी वायु और मातृभूमि की मिट्टी के लिए जीना चाहता है।
12. जब कभी मछेरे को फेंका हुआ
फैला जाल
समेटते हुए देखता हूँ
तो अपना सिमटता हुआ
‘स्व’ याद हो आता है
जो कभी समाज, गाँव और
परिवार के वृहत्तर परिधि में
समाहित था
‘सर्व’ की परिभाषा बनकर,
और अब केंद्रित हो
बैठी, पराग को समेटती
मधुमक्खियों को देखता हूँ
तो मुझे अपने पूर्वजों की
याद हो आती है,
जो कभी फूलों को रंग, जाति, वर्ग
अथवा कबीलों में नहीं बाँटते थे
और समझते रहे थे कि
देश एक बाग है
और मधु-मनुष्यता
जिससे जीने की अपेक्षा होती है।
किंतु अब गया हूँ मात्र बिंदु में।
बाग और मनुष्यता जब कभी अनेक फूलों पर,
शिलालेखों में जकड़ गई है
मात्र संग्रहालय की जड़ वस्तुएँ। (Delhi 2013 Comptt.)
प्रश्नः 1.
काव्यांश में ‘स्व’ शब्द से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
काव्यांश में ‘स्व’ शब्द से कवि का आशय अपनेपन की भावना से है।
प्रश्नः 2.
काव्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
काव्यांश का मूलभाव यह है कि बदलते समय के साथ मनुष्य के अपनेपन की भावना संकीर्ण होती गई है।
प्रश्नः 3.
आज बाग और मनुष्यता की स्थिति में क्या बदलाव आ गया है?
उत्तर:
आज बाग और मनुष्यता की बातें शिलालेखों में जकड़कर संग्रहालय की जड़ वस्तुएँ बन गई हैं।
प्रश्नः 4.
कवि के बचपन और वर्तमान की स्व-भावना में क्या अंतर आ गया है?
उत्तर:
कवि के बचपन में स्व का दायरा पूरे गाँव और समाज तक सीमित था परंतु अब स्व की भावना अपने आप तक सिमट कर रह गई है। उसकी यह भावना दिनों-दिन संकीर्ण होती गई।
प्रश्नः 5.
मधुमक्खियों को देखकर कवि को किसकी याद आ जाती है और क्यों?
उत्तर:
मधुमक्खियों को देखकर कवि को अपने पूर्वजों की याद हो आती है क्योंकि मधुमक्खियाँ जिस प्रकार तरह-तरह के फूलों से पराग निकालती हैं उसी प्रकार पूर्वज लोगों को रंग, जाति, वर्ग अथवा कबीलों में नहीं बाँटते थे। उनमें एकता बनाए रखते थे।
13. बिन बैसाखी अपनी शर्तों पर, मैं मदमस्त चला।
सब्जबाग को दिखा-दिखा
दुनिया रह-रह मुसकाई।
कंचन और कामिनी ने भी
अपनी छटा दिखाई।
सतरंगे जग के साँचे में, मैं न कभी ढला॥
चिनगारी पर चलते-चलते
रुका-झुका ना पल-छिन।
गिरे हुओं को रहा उठाता
हालाहल पीते-पीते ही मैं जीवन-भर चला॥
कितने बढ़े-चढ़े द्रुत चलकर
शैलशिखर शृंगों पर।
कितने अपनी लाश लिए
फिरते अपने कंधों पर।
सबकी अपनी अलग नियति है, है जीने की कला॥
आँधी से जूझा करना ही
बस आता है मुझको।
पीड़ाओं के संग-संग जीना
भाता है बस मुझको। गले लगाता अनुदिन।
मैं तटस्थ, जो भी जग समझे कह ले बुरा-भला॥ (All India 2013 Comptt.)
प्रश्नः 1.
सतरंगी संसार कवि को क्यों नहीं लुभा सका?
उत्तर:
कवि को सतरंगी संसार इसलिए नहीं लुभा सका क्योंकि उसे अपने सिद्धांतों से विशेष प्यार है।
प्रश्नः 2.
कवि को लुभाने के लिए दुनिया ने क्या-क्या किया?
उत्तर:
कवि को लुभाने के लिए दुनिया ने तरह-तरह के सपने दिखाए और कंचन-कामिनी को भी उसके सामने प्रस्तुत कर दिया।
प्रश्नः 3.
‘कितने बढ़े-चढ़े द्रुत चलकर शैल-शिखर के शृंगों पर’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
कितने बढ़े-चढ़े द्रुत चलकर शैल-शिखर के शृंगों पर’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4.
कवि ने अपना जीवन समाज के अन्य लोगों से अलग बिताया, कैसे?
उत्तर:
कवि विपरीत परिस्थितियों का सामना करता रहा पर पल भर के लिए भी न रुका। वह दीन-दुखियों की मदद करते, उन्हें गले लगाते हुए नाना प्रकार के कष्ट सहकर जीवन बिताया।।
प्रश्नः 5.
कवि को संघर्ष करना अच्छा लगता है। – काव्यांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि को संकट और मुसीबतों से संघर्ष करना अच्छा लगता है। वह दीन-दुखियों का साथ देना जानता है। कवि को जग ने भले ही भला-बुरा कहा पर वह इससे तटस्थ रहा। इस तरह वह संघर्षशील बना रहा।
14. जिस पर गिरकर उदर-दरी से तुमने जन्म लिया है
जिसका खाकर अन्न, सुधा-सम नीर-समीर पिया है।
वह स्नेह की मूर्ति दयामयि माता-तुल्य मही है
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है?
पैदाकर जिस देश-जाति ने तुमको पाला-पोसा।
किए हुए है वह निज हित का तुमसे बड़ा भरोसा
उससे होना उऋण प्रथम है सत्कर्तव्य तुम्हारा
फिर दे सकते हो वसुधा को शेष स्वजीवन सारा। (Delhi 2013 Comptt.)
प्रश्नः 1.
‘खाकर जिसका अन्न’ में किसका अन्न खाने की बात कवि ने कही है?
उत्तर:
‘खाकर जिसका अन्न’ में मातृभूमि का अन्न खाने की बात कवि ने कही है।
प्रश्नः 2.
‘सुधा-सम नीर-समीर पिया है’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
‘सुधा-सम नीर-समीर पिया है’ में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 3.
कवि ने किसके ऋण से उऋण होने की बात कही है?
उत्तर:
कवि ने व्यक्ति का भरण-पोषण करने वाली मातृभूमि के ऋण से उऋण होने की बात कही है।
प्रश्नः 4.
कवि किसे किसके प्रति कर्तव्यों की याद दिला रहा है और क्यों?
उत्तर:
कवि भारतवासियों को मातृभूमि के प्रति उनके कर्तव्यों की याद दिला रहा है क्योंकि भारतवासियों ने मातृभूमि का अनाज खाया है और अमृत तुल्य पानी और हवा का सेवन करके जीवन पाया है।
प्रश्नः 5.
देश जाति के प्रति व्यक्ति का पहला कर्तव्य क्या है और क्यों?
उत्तर:
देश और जाति के प्रतिव्यक्ति का पहला कर्तव्य उसके कर्ज से मुक्ति पाना है क्योंकि जिस देश और जाति ने व्यक्ति को जन्म दिया है, उसने व्यक्ति से अपना हित पूरा होने की आशा लगा रखी है।
15. प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ?
सात साल की बच्ची का पिता तो है।
सामने गीयर से ऊपर
हुक से लटका रखी हैं
काँच की चार गुलाबी चूड़ियाँ।
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं,
झुक कर मैंने पूछ लिया,
खा गया मानो झटका।
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रौबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला : हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनियाँ । (All India 2013 Comptt.)
प्रश्नः 1.
‘बच्ची का पिता तो है’ पंक्ति में किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है ?
उत्तर:
‘बच्ची का पिता तो है’ पंक्ति में बच्ची के प्रति आत्मीयता, स्नेह और लगाव की अभिव्यक्ति हुई है।
प्रश्नः 2.
ड्राइवर झटका क्यों खा गया?
उत्तर:
चूड़ियों के बारे में पूछने पर ड्राइवर इसलिए झटका खा गया क्योंकि उसे अचानक अपनी बिटिया की याद आ गई।
प्रश्नः 3.
‘खा गया मानो झटका’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
‘खा गया मानो झटका’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
प्रश्नः 4.
चूड़ियाँ किसने और कहाँ लटका रखी थी और क्यों?
उत्तर:
बस में चूड़ियों को ड्राइवर की बेटी ने गीयर से ऊपर हुक से लटका रखी थी ताकि पिता को उसकी बराबर याद आती रहे और वह जल्दी से घट लौट आएँ।
प्रश्नः 5.
बस ड्राइवर के चेहरे और उसकी आवाज़ में निहित विरोधाभास स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
बस ड्राइवर अधेड़ उम्र वाला व्यक्ति है। उसका चेहरा रोबीला है जिस पर घनी मूंछे हैं। इससे चेहरा कठोर प्रतीत होता है परंतु इस रोबीले चेहरे की आवाज़ धीमी है। इस तरह दोनों में विरोधाभास है।
16. तापित को स्निग्ध करे
प्यासे को चैन दे।
सूखे हुए अधरों को
फिर से जो बैन दे।
ऐसा सभी पानी है।
लहरों के आने पर
काई-सा फटे नहीं
रोटी के लालच में
तोते-सा रटे नहीं
प्राणी वही प्राणी है।
लँगड़े को पाँव और
लूले को हाथ दे,
रात की सँभार में
मरने तक साथ दे,
बोले तो हमेशा सच
सच से हटे नहीं,
हरगिज़ डरे नहीं
सचमुच वही प्राणी है।
प्रश्नः 1.
काव्यांश में पानी की क्या विशेषता बताई गई है?
उत्तर:
काव्यांश में पानी की विशेषता यह बताई गई है कि पानी प्यासों की प्यास, गरमी से परेशान लोगों का ताप और अधरों की शुष्कता हर लेता है।
प्रश्नः 2.
‘काई-सा फटे नहीं’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
‘काई-सा फटे नहीं’ में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 3.
‘फिर से जो न दे’ का आशय क्या है?
उत्तर:
फिर से जो बैन दे का आशय है कि पानी लोगों की जुबान को तर करके उन्हें बोलने लायक बनाता है।
प्रश्नः 4.
कवि सच्चा प्राणी किसे मानता है?
उत्तर:
कवि सच्चा प्राणी उसे मानता है जो लँगड़े-लूलों और लाचारों को सहारा देता है, कठिन समय में उनका साथ निभाता है, सच बोलने से कभी नहीं डरता है और हमेशा सच बोलता है।
प्रश्नः 5.
अपने किन कर्मों से प्राणी छोटा बन जाता है?
उत्तर:
जब व्यक्ति छोटी-सी मुसीबत देखते ही घबरा जाते हैं, अपने स्वार्थ के लिए अपना स्वाभिमान भूलकर तोतों की भाँति रटू बनकर दूसरों को उनकी चापलूसी और झूठा गुणगान करने लगते हैं तब वे छोटे बन जाते हैं।
17. अरे! चाटते जूठे पत्ते जिस दिन देखा मैंने नर को
उस दिन सोचा, क्यों न लगा दूँ आज आग इस दुनियाभर को?
यह भी सोचा, क्यों न टेटुआ घोटा जाए स्वयं जगपति का?
जिसने अपने ही स्वरूप को रूप दिया इस घृणित विकृति का।
जगपति कहाँ ? अरे, सदियों से वह तो हुआ राख की ढेरी;
वरना समता संस्थापन में लग जाती क्या इतनी देरी?
छोड़ आसरा अलखशक्ति का रे नर स्वयं जगपति तू है,
यदि तू जूठे पत्ते चाटे, तो तुझ पर लानत है थू है।
ओ भिखमंगे अरे पराजित, ओ मजलूम, अरे चिर दोहित,
तू अखंड भंडार शक्ति का, जाग और निद्रा संमोहित,
प्राणों को तड़पाने वाली हुँकारों से जल-थल भर दे,
अनाचार के अंबारों में अपना ज्वलित पलीता भर दे।
भूखा देख तुझे गर उमड़े आँसू नयनों में जग-जन के
तू तो कह दे, नहीं चाहिए हमको रोने वाले जनखे,
तेरी भूख असंस्कृति तेरी, यदि न उभाड़ सके क्रोधानल,
तो फिर समयूँगा कि हो गई सारी दुनिया कायर निर्बल। (Delhi 2014)
प्रश्नः 1.
कवि क्या देखकर दुनियाभर में आग लगा देना चाहता है ?
उत्तर:
भूखे-प्यासे मनुष्य को जूठे पत्तलों में खाने के लिए कुछ खोजता देखकर कवि दुनिया भर में आग लगा देना चाहता है।
प्रश्नः 2.
‘वह तो हुआ राख की ढेरी’ कवि ऐसा क्यों कह रहा है?
उत्तर:
वह अर्थात् जगपति राख की ढेरी हो गया है क्योंकि यदि जगपति अपना काम कर रहा होता तो दुनिया में समानता आने में इतनी देर न लगती।
प्रश्नः 3.
‘अनाचार के अंबारों में अपना ज्वलित पलीता भर दे’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
‘अनाचार के …… भर दे’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4.
कवि भूखों नंगों को उनकी शक्ति का भान किस तरह कराना चाहता है और क्यों?
उत्तर:
कवि भूखे-नंगों उनकी शक्ति के बारे में ज्ञान कराते हुए उन्हें खुद ही जगपति होने, अदृश्यशक्ति का सहारा त्यागने, निद्रा और सम्मोहन त्यागने की बात कह रहा है ताकि वे अपनी शक्ति पहचान कर दूसरों का मुँह ताकते हुए जीना छोड़ें।
प्रश्नः 5.
दुनिया कायर और निर्बल हो गई है, कवि ऐसा कब और क्यों सोचेगा?
उत्तर:
कुछ लोगों को भूखा-नंगा देखकर यदि लोग आँसू बहाने के सिवा अभावग्रस्तों के लिए कुछ नहीं करते हैं तो कवि समझेगा कि दुनिया पागल हो गई है। लोगों को भूखा नंगा देखकर उन्हें व्यवस्था परिवर्तन के लिए आगे आ जाना चाहिए। अपठित काव्यांश
18. पृथ्वी की छाती फाड़, कौन यह अन्न उगा लाता बाहर?
दिन का रवि-निशि की शीत कौन लेता अपनी सिर-आँखों पर?
कंकड़ पत्थर से लड़-लड़कर, खुरपी से और कुदाली से,
ऊसर बंजर को उर्वर कर, चलता है चाल निराली ले।
मज़दूर भुजाएँ वे तेरी, मज़दूर, शक्ति तेरी महान;
घूमा करता तू महादेव! सिर पर लेकर के आसमान !
पाताल फोड़कर, महाभीष्म! भूतल पर लाता जलधारा;
प्यासी भूखी दुनिया को तू देता जीवन संबल सारा !
खेती से लाता है कपास, धुन-धुन, बुनकर अंबार परम;
इस नग्न विश्व को पहनाता तू नित्य नवीन वस्त्र अनुपम। ।
नंगी घूमा करती दुनिया, मिलता न अन्न, भूखों मरती,
मज़दूर! भुजाएँ जो तेरी मिट्टी से नहीं युद्ध करतीं!
तू छिपा राज्य-उत्थानों में, तू छिपा कीर्ति के गानों में;
मज़दूर! भुजाएँ तेरी ही दुर्गों के शृंग-उठानों में।
तू छिपा नवल निर्माणों में, गीतों में और पुराणों में;
युग का यह चक्र चला करता तेरी पद-गति की तानों में।
तू ब्रह्मा-विष्णु रहा सदैव,
तू है महेश प्रलयंकर फिर।
हो तेरा तांडव, शंभु! आज
हो ध्वंस, सृजन मंगलकर फिर!
प्रश्नः 1.
अन्न उगाने वाले को क्या-क्या सहना पड़ता है ?
उत्तर:
अन्न उगाने वाले किसान को दिन की धूप और रात की सरदी सहनी पड़ती है।
प्रश्नः 2.
किसान के हथियार क्या-क्या हैं? इनकी मदद से किनसे लड़ता है?
उत्तर:
किसान के हथियार खुरपी और कुदाल हैं। इनकी मदद से वह कंकड़ और पत्थर से लड़ता है।
प्रश्नः 3.
मज़दूर को महाभीष्म क्यों कहा गया है?
उत्तर:
मज़दूर पाताल फोड़कर धरती पर जलधारा लाता है, इसलिए उसे भीष्म कहा गया है।
प्रश्नः 4.
यदि मज़दूर परिश्रम न करता तो दुनिया की क्या स्थिति होती और क्यों?
उत्तर:
मज़दूर यदि परिश्रम न करता तो कपड़ों के अभाव में दुनिया नंगी घूमती और अन्न के अभाव में भूखों मरती, क्योंकि मजदूर अपने परिश्रम से फ़सल उगाता है और कपड़े बुनता है।
प्रश्नः 5.
मजदूर को किस-किस संज्ञा से विभूषित किया गया है? वह कहाँ छिपा है?
उत्तर:
मज़दूर को ब्रहमा, विष्णु और महेश की संज्ञा से विभूषित किया गया है। वह राज्य की प्रगति, उसकी यशगाथा, दुर्ग की ऊँची चोटियों में नए निमार्णों और गीत-पुराणों में छिपा है।
19. भाग्यवाद आवरण पाप का
और शस्त्र शोषण का
जिससे दबा एक जन
भाग दूसरे जन का।
पूछो किसी भाग्यवादी से
यदि विधि अंक प्रबल हैं,
पद पर क्यों न देती स्वयं
वसुधा निज रतन उगल है?
उपजाता क्यों विभव प्रकृति को
सींच-सींच व जल से
क्यों न उठा लेता निज संचित करता है।
अर्थ पाप के बल से,
और भोगता उसे दूसरा
भाग्यवाद के छल से।
नर-समाज का भाग्य एक है
वह श्रम, वह भुज-बल है।
जिसके सम्मुख झुकी हुई है;
पृथ्वी, विनीत नभ-तल है।
प्रश्नः 1.
भाग्यवादी सफलता के बारे में क्या मानते हैं ?
उत्तर:
भाग्यवादी सफलता के बारे में यह मानते हैं कि भाग्य में लिखी होने पर ही सफलता मिलती है।
प्रश्नः 2.
धरती और आकाश किसके कारण झुकने को विवश हुए हैं ?
उत्तर:
धरती और आकाश मनुष्य के परिश्रम के कारण झुकने को विवश हुए हैं।
प्रश्नः 3.
काव्यांश में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश में निहित संदेश यह है कि मनुष्य को भाग्य का सहारा छोड़कर परिश्रम से सफलता प्राप्त करनी चाहिए।
प्रश्नः 4.
कवि भाग्यवादियों से क्या पूछने के लिए कहता है और क्यों?
उत्तर:
कवि भाग्यवादियों से यह पूछने के लिए कहता है कि यदि भाग्य का बल इतना प्रबल है तो सुधा अपने भीतर छिपे रत्नों को मनुष्य के चरणों पर क्यों नहीं रख देती है। इसके लिए मनुष्य को परिश्रम क्यों करना पड़ता है। ऐसा पूछने का कारण हैं भाग्यवाद की बातें मिथ्या होना।
प्रश्नः 5.
भाग्यवाद को किसका हथियार कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
भाग्यवाद को दूसरों का शोषण करने का अस्त्र कहा गया है क्योंकि भाग्यवाद का छलावा देकर लोग दूसरों का शोषण करते हैं और दूसरों को मिलने वाला भाग दबाकर बैठ जाते हैं।
20. जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस-उस राही को धन्यवाद।
जीवन अस्थिर, अनजाने ही
हो जाता पथ पर मेल कही
सीमित पग-डग, लंबी मंजिल,
तय कर लेना कुछ खेल नहीं।
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते
सम्मुख चलता पथ का प्रमाद,
जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस-उस राही को धन्यवाद।
साँसों पर अवलंबित काया,
जब चलते-चलते चूर हुई।
दो स्नेह शब्द मिल गए,
मिली नव स्फूर्ति,
थकावट दूर हुई।
पथ के पहचाने छूट गए,
पर साथ-साथ चल रही यादें।
जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस-उस राही को धन्यवाद।
प्रश्नः 1.
कवि किस-किस राही को धन्यवाद देना चाहता है?
उत्तर:
कवि को जीवन-मार्ग पर जिन-जिन लोगों से स्नेह मिला, वह उन्हें धन्यवाद देना चाहता है।
प्रश्नः 2.
जाने-पहचाने लोगों का साथ छूट जाने पर भी कवि के साथ अब कौन चल रहा है?
उत्तर:
जाने-पहचाने लोगों का साथ छूट जाने पर भी कवि के साथ अब तरह-तरह की यादें चल रही हैं।
प्रश्नः 3.
जीवन पथ पर कवि का साथ कौन-कौन दे रहे हैं?
उत्तर:
जीवन-पथ पर कवि का साथ सुख-दुख और आलस्य दे रहे हैं।
प्रश्नः 4.
कवि राही को धन्यवाद क्यों देना चाहता है?
उत्तर:
कवि राही को इसलिए धन्यवाद देना चाहता है क्योंकि जीवन अस्थिर एवं सीमित है। इस दशा में मंजिल पर पहुँचना आसान नहीं है। ऐसे में राही से मिले स्नेह के कारण वह जीवन यात्रा पूरी कर सका।
प्रश्नः 5.
कवि की जीवन-यात्रा की सुखद-समाप्ति का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
कवि जीवन यात्रा पर जब थकने लगा तभी उसे स्नेह भरे शब्दों से नई स्फूर्ति एवं ऊर्जा मिली, जिससे उसकी थकावट दूर हो गई और वह जीवन पर बढ़ता गया।
(21) उठे राष्ट्र तेरे कंधों पर, बढ़े प्रगति के प्रांगण में।
पृथ्वी को राख दिया उठाकर, तूने नभ के आँगन में॥
तेरे प्राणों के ज्वारों पर, लहराते हैं देश सभी।
चाहे जिसे इधर कर दे तू, चाहे जिसे उधर क्षण में॥
मत झुक जाओ देख प्रभंजन, गिरि को देख न रुक जाओ।
और न जम्बुक-से मृगेंद्र को, देख सहम कर लुक जाओ॥
झुकना, रुकना, लुकना, ये सब कायर की सी बातें हैं।
बस तुम वीरों से निज को बढ़ने को उत्सुक पाओ॥
अपनी अविचल गति से चलकर नियतिचक्र की गति बदलो।
बढ़े चलो बस बढ़े चलो, हे युवक! निरंतर बढ़े चलो।
देश-धर्म-मर्यादा की रक्षा का तुम व्रत ले लो।
बढ़े चलो, तुम बढ़े चलो, हे युवक! तुम अब बढ़े चलो॥ अपठित काव्यांश
प्रश्नः 1.
राष्ट्र को प्रगति के पथ पर ले जाने का दायित्व किसके कंधों पर है?
उत्तर:
राष्ट्र को प्रगति के पथ पर ले जाने का दायित्व नवयुवकों एवं जवानों के कंधे पर है।
प्रश्नः 2.
किन बातों को कायरों की सी बातें कहा गया है?
उत्तर:
संकटों-बाधाओं को देखकर झुक जाना, रुक जाना और छिप जाना कायरों की-सी बाते हैं।
प्रश्नः 3.
‘नियतिचक्र की गति बदलो’ में निहित अलंकार बताइए।
उत्तर:
‘निर्यात चक्र की गति बदलो’ में रूपक अलंकार है।
प्रश्नः 4.
‘चाहे जिसे इधर कर दे तू चाहे जिसे उधर क्षण में’-कवि ने ऐसा किनके बारे में कहा है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने ऐसा नवयुवकों एवं जवानों के बारे में कहा है क्योंकि वे असीम शक्ति एवं ऊर्जा के भंडार होते हैं। उनकी शक्ति पर देश की प्रगति निर्भर करती है। वे असंभव से दिखने वाले काम को भी संभव बना सकते हैं।
प्रश्नः 5.
कवि नवयुवकों से क्या आह्वान कर रहा है और किस तरह प्रेरित कर रहा है?
उत्तर:
कवि नवयुवकों को निरंतर आगे बढ़ने का आह्वान कर रहा है। कवि नवयुवकों को उनमें छिपी बिना रुके चलते जाने की शक्ति, नियतिचक्र बदलने की क्षमता, देश के धर्म और मर्यादा की रक्षा करने में समर्थता का बोध कराकर उन्हें प्रेरित कर रहा है।
22. निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी-पिटी
हर बार बिखेरी गई किंतु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी।
आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़कर छल जाए ।
सूरज दमके तो तप जाए रजनी ठुमके तो ढल जाए,
यो तो बच्चों की गुड़िया-सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या
आँधी आए तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल जाए,
फ़सलें उगती, फ़सलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है।
सौ बार बने सौ बार मिटे लेकिन मिट्टी अविनश्वर है।
प्रश्नः 1.
सूरज के दमकने पर मिट्टी पर क्या असर पड़ता है?
उत्तर:
सूरज के दमकने पर मिट्टी तप जाती हैं और उसका स्वरूप और भी मजबूत हो जाता है।
प्रश्नः 2.
‘यो तो बच्चों की गुड़िया सी’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर:
‘यो तो बच्चों की गुड़िया-सी’ में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 3.
मिट्टी कब ढल जाती है?
उत्तर:
जब रात होती है तब मिट्टी ढल जाती है।
प्रश्नः 4.
उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जो मिट्टी के स्वरूप को मिटाने में असफल रही।
उत्तर:
मिट्टी के स्वरूप को नष्ट करने का असफल प्रयास करने वाली परिस्थितियाँ हैं –
क. कुम्हार के द्वारा मिट्टी को कूटा-पीटा जाना।
ख. धूप में खूब तपाया जाना।
ग. बार-बार बिखराया जाना।
घ. छन्ने के द्वारा छाना जाना।
प्रश्नः 5.
‘भोली मिट्टी की हस्ती क्या’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है पर उसने अपने कथन का खंडन भी किस तरह किया है ?
उत्तर:
कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि आँधी आने पर मिट्टी उड़ जाती है, पानी में गलकर बह जाती है, पर बार-बार फ़सलें कटने और उगने से धरती की चिर उर्वरता और मिटाने का प्रयास करने पर भी न मिटने की बात कहकर उसने अपने कथन का खंडन किया है।
23. बहुत बड़ी बरबादी की
इस धरती पर आबादी की
यूँ फ़सल उगाते जाओगे
अब वह दिन ज़्यादा दूर नहीं
जब सिर धुन-धुन पछताओगे।
तुम कितने जंगल तोड़ोगे,
कितने वृक्षों को काटोगे,
इस शस्य श्यामला धरती को
कितने टुकड़ों में बाँटोगे?
है किंचित तुमको सबर नहीं
क्या ये भी तुमको खबर नहीं?
ये धरती तो बस धरती है,
ये धरती कोई रबर नहीं,
बोते हो पेड़ बबूलों के
फिर आम कहाँ से खाओगे?
यह बढ़ती जाती बदहाली,
खो गई सुबह की तरुणाई,
खो गई शाम की वह लाली,
बिन वर्षा के इस धरती पर,
तुम कैसे अन्न उगाओगे?
यह गंगा भी अब मैली है,
जल की हर बूंद विषैली है,
दस दूषित जल के पीने से,
नित नई बीमारी फैली है।
प्रश्नः 1.
किस फ़सल को उगाने से कवि मनुष्य को सावधान कर रहा है ?
उत्तर:
जनसंख्या की फ़सल उगाने के प्रति कवि मनुष्य को सावधान कर रहा है।
प्रश्नः 2.
धरती पर अन्न उगाना कब संभव नहीं होगा?
उत्तर:
पेड़ों के निरंतर काटे जाने से वर्षा होनी बंद हो जाएगी तब धरती पर अन्न उगाना संभव नहीं होगा।
प्रश्नः 3.
काव्यांश में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश में निहित संदेश यह है कि बढ़ती जनसंख्या पर अविलंब अंकुश लगाने की आवश्यकता है अन्यथा इसका दुष्परिणाम भयानक होगा।
प्रश्नः 4.
धरती के विषय में कवि मनुष्य को किस तरह सावधान कर रहा है और क्यों?
उत्तर:
धरती के बारे में कवि मनुष्य को सावधान करते हुए कह रहा है कि इस हरी-भरी धरती के अब और टुकड़े करना बंद करो। तुम अपनी अधीरता छोड़ दो। यह धरती असीमित नहीं बल्कि सीमित है। इसके साथ छेड़छाड़ का परिणाम बुरा होगा।
प्रश्नः 5.
कवि ने गंगा की स्थिति पर चिंता क्यों प्रकट की है?
उत्तर:
कवि ने गंगा की स्थिति पर चिंता इसलिए प्रकट की है क्योंकि जनसंख्या में निरंतर वृदधि के कारण गंगा इतनी मैली हो गई है कि उसकी एक-एक बूंद जहरीली हो गई है। इसका सेवन करने से नई-नई बीमारियाँ हो जाती हैं।
24. हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार। ।
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार।
जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक,
व्योम-तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक।
विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत।
सप्त स्वर सप्त सिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत।
बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत।
अरुण-केतन लेकर निज हाथ वरुण पथ में हम बढ़े अभीत।
प्रश्नः 1.
प्रथम किरणों का उपहार किसे मिलता है?
उत्तर:
सूरज की पहली किरणों का उपहार भारत भूमि को मिलता है।
प्रश्नः 2.
‘विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
‘विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत’ में अनुप्रास अलंकार है। अपठित काव्यांश
प्रश्नः 3.
दुनिया में आलोक कब फैला?
उत्तर:
दुनिया में आलोक तब फैला जब भारतीय मनीषियों ने विश्व को ज्ञान दिया।
प्रश्नः 4.
उषा किसका स्वागत करती है और किस तरह?
उत्तर:
उषा भारत भूमि का हँसकर स्वागत करती है। वह सूरज की पहली किरणों का उपहार देकर हीरों का हार पहनाती है।
प्रश्नः 5.
‘बचाकर बीज रूप से सृष्टि’ पंक्ति में किस प्रसंग का उल्लेख है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘बचाकर बीज रूप से सृष्टि’ पंक्ति में उस प्रसंग का उल्लेख है जब सारी सृष्टि जलमय हो गई थी। धरती पर अत्यधिक सरदी पड़ने लगी थी तब आदि पुरुष मनु ने सृष्टि का बीज बचाने के लिए नाव पर इस शीत को झेला था जिससे सृष्टि को ऐसा स्वरूप मिला।
25. तुम भारत, हम भारतीय हैं, तू माता हम बेटे,
किसकी हिम्मत है कि तुम्हें दुष्टता-दृष्टि से देखे।
ओ माता, तुम एक अरब से अधिक भुजाओं वाली
सबकी रक्षा में तुम सक्षम, हो अदम्य बलशाली।
भाषा, देश, प्रदेश भिन्न है, फिर भी भाई-भाई,
भारत की साझी संस्कृति में पलते भारतवासी।
सुदिनों में हम एक साथ हँसते, गाते, सोते हैं,
दुर्दिन में भी साथ-साथ जागते, पौरुष धोते हैं।
तुम हो शस्य-श्यामला, खेतों में तुम लहराती हो,
प्रकृति प्राणमयी, साम-गानमयी, तुम न किसे भाती हो।
तुम न अगर होती तो धरती वसुधा क्यों कहलाती?
गंगा कहाँ बहा करती, गीता क्यों गाई जाती?
प्रश्नः 1.
काव्यांश में भारत और भारतीयों में रिश्ता बताया गया है?
उत्तर:
काव्यांश में भारत और भारतीयों में माँ-बेटे का रिश्ता बताया गया है।
प्रश्नः 2.
‘तुम्हें दुष्टता-दृष्टि से देखे’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर:
‘तुम्हें दुष्टता-दृष्टि से देखे’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3.
माता का शस्य-श्यामला रूप कहाँ देखा जा सकता है और किस रूप में?
उत्तर:
माता का शस्य-श्यामला रूप खेतों में देखा जा सकता है जहाँ वह हरी-भरी फसलों के रूप में लहराती है।
प्रश्नः 4.
काव्यांश के आधार पर भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संस्कृति की विशेषता है- अनेकता में एकता। यहाँ विभिन्न जाति धर्म के लोग जिनकी भाषा, पहनावा, खान-पान, रहन-सहन अलग-अलग होने पर भी सब मिल-जुलकर रहते हैं। वे आपस में भाई-भाई हैं और सुख-दुख में एक दूसरे का साथ देते हैं।
प्रश्नः 5.
काव्यांश में वर्णित माता की विशेषताएँ एवं महत्ता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश में वर्णित भारत माता अदम्य बलशाली है जो सबकी रक्षा में सक्षम है। एक अरब से अधिक उसके पुत्र हैं। अगर भारतमाता न होती तो यह धरती वसुधा न कहलाती। तब गंगा कहाँ बहती और गीता का गायन क्यों किया जाता। इस तरह भारत माता की विशेष महत्ता है।
अब स्वयं करें
1. तुम कुछ न करोगे, तो भी विश्व चलेगा ही,
फिर क्यों गर्वीले बन लड़ते अधिकारों को?
सो गर्व और अधिकार हेतु लड़ना छोड़ो,
अधिकार नहीं, कर्तव्य-भाव का ध्यान करो!
है तेज़ वही, अपने सान्निध्य मात्र से जो
सहचर-परिचर के आँसू तुरत सुखाता है,
उस मन को हम किस भाँति वस्तुतः सु-मन कहें,
औरों को खिलता देख, न जो खिल जाता है?
काँटे दिखते हैं जब कि फूल से हटता मन,
अवगुण दिखते हैं जब कि गुणों से आँख हटे;
उस मन के भीतर दुख कहो क्यों आएगा;
जिस मन में हों आनंद और उल्लास डटे!
यह विश्व व्यवस्था अपनी गति से चलती है,
तुम चाहो तो इस गति का लाभ उठा देखो,
व्यक्तित्व तुम्हारा यदि शुभ गति का प्रेमी हो
तो उसमें विभु का प्रेरक हाथ लगा देखो!
प्रश्नः
- काव्यांश में लोगों की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया गया है?
- काव्यांश में निहित संदेश का उल्लेख कीजिए।
- कवि मनुष्य से किसका लाभ उठाने के लिए कह रहा है?
- ‘सच्चा तेज़’ और ‘सु-मन’ किन्हें कहा गया है, स्पष्ट कीजिए।
- व्यक्ति को काँटे और अवगुण क्यों दिखाई देते हैं और व्यक्ति के मन में दुख का प्रवेश कब नहीं हो सकता?
2. मैं चला, तुम्हें भी चलना है असिधारों पर,
सर काट हथेली पर लेकर बढ़ आओ तो।
इस युग को नूतन स्वर तुमको ही देना है,
तुम बना सकोगे भूतल का इतिहास नया,
मैं गिरे हुओं को, बढ़कर गले लगाऊँगा।
क्यों नीच-ऊँच, कुल, जाति, रंग का भेद-भाव?
मैं रूढ़िवाद का कल्मष महल ढहाऊँगा।
तुम बढ़ा सकोगे कदम ज्वलित अंगारों पर?
मैं काँटों पर बिंधते-बिंधते बढ़ जाऊँगा।
सागर की विस्तृत छाती पर हो ज्वार नया अपनी कूवत को आज जरा आजमाओ तो।
मैं कूद स्वयं पतवार हाथ में था[गा।
है अगर तुम्हें यह भूख ‘मुझे भी जीना है’
तो आओ मेरे साथ नींव में गड़ जाओ।
ऊपर से निर्मित होना है आनंद महल
मरते-मरते भी दुनिया में कुछ कर जाओ।
प्रश्नः
- काव्यांश में असिधारों पर चलने के लिए किसे कहा जा रहा है?
- कवि अपनी शक्ति का परीक्षण करने के लिए क्यों कह रहा है?
- ‘जीने के लिए बलिदान देना होता है’ – यह भाव किस पंक्ति में निहित है?
- भूतल का नया इतिहास बनाने का क्या तात्पर्य है ? ऐसा होने पर कवि क्या करना चाहता है?
- जीने की भूख रखने वालों को कवि क्या सलाह देता है ? व्यक्ति अपना नाम किस तरह अमर कर सकता है?
3) बस फूलों का बाग नहीं, जीवन में लक्ष्य हमारा,
उससे आगे बहुत दूर है, बहुत दूर तक जाना।
थोड़ी मात्र सफलता से ही, जो संतोष किए हैं,
घर की चारदिवारी में मस्ती के साथ जिए हैं।
क्या मालूम उन्हें कितना परियों का लोक सुहाना,
उससे आगे बहुत दूर है, बहुत दूर तक जाना।
चलते-चलते नहीं पड़े, जिनके पैरों में छाले,
खुशियाँ क्या होती हैं, वे क्या जानेंगे मतवाले।
सुख काँटों के पथ से है, बचने का नहीं बहाना,
उससे आगे बहुत दूर है, बहुत दूर तक जाना।
एक बाग क्या, जब धरती पर बंजर मौज मनाएँ,
एक फूल क्या, जब पग-पग काँटे जाल बिछाएँ।
गली-गली में, डगर-डगर में है नंदन लहराना,
उससे आगे बहुत दूर है, बहुत दूर तक जाना।
प्रश्नः
- ‘बहुत दूर तक जाना’ पंक्ति का आशय क्या है?
- असली खुशियों के बारे में कौन नहीं जानते हैं ?
- काव्यांश में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
- परियों के सुहाने लोक के बारे में किन्हें पता नहीं लग पाता है और क्यों?
- कवि एक बाग और एक फूल से संतुष्ट क्यों नहीं है? वह क्या करना चाहता है ?
4. इस देश-धरा की व्यथा-कथा, निज टीस समझकर पहचानो।
संकट की दुर्दिन-वेला में, मानव की गरिमा को जानो॥
इस धरती पर तो अकर्मण्य को, जीने का अधिकार नहीं।
मानव कैसा, यदि मानवता से, हो स्वाभाविक प्यार नहीं॥
यह दुनिया का है अटल-चक्र, तुम मानो चाहे न मानो। ।
इस देश धरा की व्यथा-कथा, निज टीस समझकर पहचानो।
है हर्ष-विषाद निरंतर क्रम, या है सह जीवन का स्पंदन।
हैं कहीं गूंजते अट्टहास, तो कहीं मचलते हैं क्रंदन ॥
क्यों पीछे दौड़े हो सुख के, दुख को भी तो अपना मानो।
इस देश-धरा की व्यथा-कथा, निज टीस समझकर पहचानो।
अति दुर्गम ये राहें जग की, इनका है कोई पार नहीं।
संघर्ष सार है जीवन का कुछ विषय-भोग का द्वार नहीं।
धारो जीवन में हंस-वृत्ति, फिर नीर-क्षीर अंतर जानो।
इस देश-धरा की व्यथा-कथा निज टीस समझकर पहचानो॥
प्रश्नः
- इस धरती पर जीने का अधिकार किन्हें नहीं है?
- सच्ची मानवता किसे कहा गया है?
- कवि लोगों से क्या आह्वान कर रहा है?
- कवि ने लोगों को जीवन की किस सच्चाई से अवगत कराया है? वह मनुष्य को क्या सीख दे रहा है?
- जीवन का सार किसे कहा गया है? जीवन में नीर-क्षीर का अंतर कैसे जाना जा सकता है?